विज्ञानं एक शक्ति है, जो नित नए आविष्कार करती है।  वह शक्ति न ही अच्छी है न ही बुरी वह तो केवल शक्ति है।  अगर हम उस शक्ति से मानव कल्याण के कार्य करें तो वह वरदान प्रतीत होती है अगर उसी से विनाश करना शुरू कर दें तो वह अभिशाप लगती है।
   विज्ञानं ने अंधों को ऑंखें दी हैं और बहरों को सुनने की ताकत।  लाइलाज रोगों की रोकथाम की है और अकाल मृत्यु पर विजय पायी है। विज्ञानं की सहयता से यह युग बटन युग बन गया है।  बटन दबाते ही वायु देवता पंखे को लिए हमारी सेवा करने लगते हैं, इंद्र देवता वर्षा करने लगते हैं, कहीं प्रकाश जगमगाने लगता है तो कही शीत उष्ण हवा के झोंके सुख देने लगते हैं। बस, गाड़ी, वायुयान ने स्थान की दूरी को बांध दिया है।  टेलीफोन द्वारा तो हम सारी वसुधा से बातचीत कर उसे वाकई में कुटुंब बना लेते हैं।  हमने समुद्र की गहराइयाँ भी नाप डाली हैं और आसमान की उचाइयां भी।  हमारे टी.वि. रेडियो, वीडियो में मनोरंजन के सभी साधन कैद हैं।  सचमुच विज्ञानं वरदान ही तो है।
       मनुष्य ने जहाँ विज्ञानं से सुख साधन जुटाए हैं वहीं दुःख के अम्बार भी खड़े कर लिए हैं।  विज्ञानं के द्वारा हमने परमाणु बम जैसे कई खतरनाक हतियार तैयार कर लिए हैं।  वैज्ञानिकों का कहना है की अब दुनिया में इतनी विनाशकारी सामग्री एकत्र हो चुकी है की उससे सारी पृथ्वी  को पंद्रह बार नष्ट किया जा सकता है।  इसके अतिरिक्त प्रदूषण की समस्या बहुत बुरी तरह फ़ैल गयी है।  नित्य नए असाध्य रोग पैदा होते जा रहे हैं जो वैज्ञानिक साधनो का अंधाधुन्द प्रयोग करने का दुष्परिणाम है।
   वैज्ञानिक प्रगति का सबसे बड़ा दुष्परिणाम मानव मन पर हुआ है।  पहले जो मानव निष्कपट था, निस्वार्थ था, भोला था, मस्त और बेपरवाह था अब वह छलि, चालाक, भौतिकवादी, और तनावग्रस्त हो गया है।
उसके जीवन में से संगीत गायब हो गया है, धन की प्यास जाग गयी है।
नैतिक मूल्य नष्ट हो गए हैं।  जीवन में संघर्ष ही संघर्ष रह गए हैं।
               संसार सारा आदमी की चाल देख हुआ चकित।
               पर झाँक कर देखो दृगों में, हैं सभी प्यासे थकित।।
वास्तव में विज्ञानं को वरदान या अभिशाप बनाने वाला मनुष्य है।
जैसे अग्नि से हम रसोई भी बना सकते हैं और किसी का घर भी जला सकते हैं , चाकू से फलों का स्वाद भी ले सकते हैं और किसी का रक्त भी बहा सकते हैं ; उसी प्रकार विज्ञानं से  हम सुख साधन भी जुटा सकते हैं और मानव का विनाश भी कर सकते हैं।
अतः विज्ञानं को वरदान या अभिशाप बनाना मानव के हाथ में ही है।
इस सन्दर्भ में एक उक्ति याद रखनी चाहिए :
             ' विज्ञानं अच्छा सेवक है, लेकिन बुरा हतियार'

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है भव्य भारत ही हमारी मातृभूमि हरी भरी।
 हिंदी हमारी राष्ट्र भाषा और लिपि है नागरी।

संसार में मानव भाग्यशाली है जिसे भाषा का वरदान मिला है, जिसके द्वारा वह अपने भावों को व्यक्त कर सकता है।  साहित्य, कला, और विज्ञानं को दर्शाने का आधार है भाषा।  किसी भी राष्ट्र के निवासिओं में राष्ट्रिय एकता की भावना के विकास के लिए एक ऐसी भाषा अवश्य होना चाहिए जिसका व्यवहार राष्ट्रिय स्तर पर किया जा सके।
राष्ट्रभाषा देश का प्रतीक होती है।  मान सम्मान और गौरव होती है।
किसी भी देश में अगर उन्नति प्राप्त करनी है तो राष्ट्र भाषा का सम्मान करना अत्यंत महत्वपूर्ण है।
हमारी राष्ट्रभाषा हिंदी आज जिस रूप में जानी जाती है वह उसका विकसित रूप है।  उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, राजस्थान, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, दिल्ली आदि. क्षेत्रों में हिंदी का प्रयोग किया जाता है।  यहाँ के निवासिओं की मातृभाषा हिंदी है।  इसलिए इन राज्यों को हिंदी भाषी क्षेत्र कहा जाता है।  इन राज्यों में हिंदी की अनेक बोलियाँ विद्यमान हैं।
पंजाब, गुजरात, तथा महाराष्ट्र राज्यों में हिंदी को द्वितीय भाषा का दर्ज़ा प्राप्त है।
भारत के सभी राज्यों में हिंदी का प्रयोग संपर्क भाषा के रुप में किया जाता है।  सम्पूर्ण भारतवर्ष तथा कुछ देशों इसके अध्ययन की व्यवस्था है।
ज्ञान-विज्ञानं, वाणिज्य, शिक्षा-माध्यम तथा तकनीकी विषयों का अध्ययन भी हिंदी भाषा के माध्यम से हो रहा है।
हिंदी आज अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रचलन में है।  नेपाल, सूरीनाम, कैनाडा, इंग्लैंड ityadi