Hindi Diwas Par Vishesh : Mai Hindi Hu- Atmkatha

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मैं हिंदी हूँ।  आपकी मातृभाषा ! आपकी राष्ट्र भाषा ! मैंने अपनी बात कहने के लिए आज ही का दिन क्यों चुना जानते हो ? क्योंकि आज ही के दिन मुझे  राष्ट्र भाषा के सिंहासन पर बड़े गरिमा पूर्ण ढंग से बैठाया गया था।  तब मैं गर्वित हुई मेरा स्वाभिमान जाग उठा।  और उस स्वाभिमान को बनाये रखने के लिए मेरे लाडलों - कवियों - साहित्यकों ने अथक प्रयास किए मैं बढ़ चली विकसित होती गई ज़्यादा प्रबुह ज़्यादा परिष्कृत।
   इतिहास की परतों में बहुत दर्द और पीड़ा झेली हैं मैंने।  तुम्हे याद होगा वह समय............
जब नालंदा और तक्षशिला विश्वविद्यालय को आग के सुपुर्द किया गया वह भारत की भाषा और संस्कृति पर बहुत बड़ा हमला था जिसके कारण मेरी कृतियाँ सदा के लिए काल के गाल में समां गईं।
          मेरा दामन जल उठा परन्तु मेरा दर्द बांटने आई उर्दू।  उसने मुझे सहलाया मैंने उसे बहन की तरह अपनाया हम दोनों अजनबी धीरे धीरे एक  दूसरे को जानने पहचानने लगे।  लेकिन उन दिनों मुझसे ज़्यादा उर्दू को प्यार मिला क्योंकि उसे राजाओं का आश्रय मिला।
  मैं फिर भी अपना स्नेह बांटती हुई बहती रही सहती रही।
भारत की धरती विदेशियों से पदक्रांत थी।  मुझे एक और भाषाई हमला झेलना था वह था अंग्रेजी।  उसे शासन का आश्रय मिला था इसलिए अंग्रेजी जानने वाले भारतियों की बड़ी पूछ परख होती थी।  हिंदी में लिखे गए आवेदन पत्र, प्रार्थना पत्र भी फाड़ कर रद्दी की टोकरी में फैंक दिए जाते।
न्यायालयों के निर्णय कार्यालयों की कार्यवाही विश्वविद्यालयों की शिक्षा शासकीय आज्ञाएं सभी कुछ अंग्रेजी में होता था।
भारतीय विवश होकर अच्छा ओहदा और शासन में मान सम्मान पाने के लिए अंग्रेजी के आँचल में जा छिपते।  परन्तु उनके दिलों में आज़ादी के लिए छटपटाती वन्दे मातरम की धुन मैं ही  थी फिर समय आया आज़ादी का।  देश में तिरंगा लहराया और ज़रूरत हुई भारत की राष्ट्रीय काम काज की भाषा की।
ढेर सारी मीठी प्यारी बोलियों और क्षेत्रीय भाषाओँ की आत्मा रूप में मुझे पहचान लिया गया और मेरा पुनर्जन्म हुआ।

 आज मेरे लाडले पढ़ लिखकर देश विदेश में फ़ैल गए हैं और आपसी भाषा के रूप में मेरा अक्स निहार रहे हैं , मैं वैश्विक भाषा हो गयी हूँ।
मुझे ज़रूरत नहीं है के मेरे इस स्थापना दिवस पर नेताओं द्वारा भाषण दिए  जाएँ।  हिंदी की चिंतनीय स्थितियों पर बहस की जाए।  और मुझे बेचारी हिंदी कहा जाए।  मैं तो आप में ढूंढ रही हूँ मेरे वो आदरणीय हिंदी शिक्षक जो बालकों को सही हिंदी की शिक्षा दे रहे हैं।
 मैं ढूंढ रही हूँ वो मीरा, सूर, तुलसी, और कबीर।  जिनकी कविता की लय पर हिंदुस्तान धड़कता है। मैं जगाना चाहती हु आप सब में छिपे हुए प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद, मैथिलीशरण गुप्त और हज़ारी प्रसाद द्विवेदी, रवीन्द्रनाथ टैगोर को जो सोये हैं आप सब के भीतर।
क्योंकि हिंदी के आकाश में सदा ही आप जैसे सितारे जगमगाते रहना चाहिए।  आकाश तो अनंत है वह कभी समाप्त नहीं होगा।
और इन सब के पीछे मेरी सेना हैं हिंदी के शिक्षक जो निरंतर प्रतिभाओं को  ढूंढ़कर उन्हें परिष्कृत कर रहे हैं।
तो आइये हाथ से हाथ मिलाइये और गाइये
   हिंदी हैं हम....
                     हिंदी हैं हम वतन हैं ....
हिन्दुस्तान हमारा हमारा। ................

Written By Smt. Aarti Dubey  exclusively for Help Hindi all copy rights reserved.
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