Madhur Madhur Mere Deepak Jal

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मधुर मधुर मेरे दीपक जल
युग युग प्रतिदिन, प्रतिक्षण, प्रतिपल
प्रियतम का पथ आलोकित कर

सौरभ फैला विपुल धुप बन
मृदुल मोम सा घुल रे मृदुतन
दे प्रकाश का सिंधु अपरिमित
तेरे जीवन का अणु गल गल
पुलक पुलक मेरे दीपक जल

सारे शीतल कोमल नूतन
मांग रहे तुझसे ज्वाला कण
विश्व शलभ सिर धुन कहता ' मैं
हाय न जल पाया तुझमे मिल '
सिहर सिहर मेरे दीपक जल

जलते नभ देख असंख्यक
स्नेहहीन नित कितने दीपक
जलमय सागर का ऊर जलता
विद्दुत ले घिरता है बदल
विहँस विहँस मेरे दीपक जल

द्रुम के अंग हरित कोमलतम
ज्वाला को करते हृदयंगम
वसुधा के जड़ अंतर में भी
बंदी है तापों की हल चल
बिखर बिखर मेरे दीपक जल

मेरी निश्वासों से द्रुततर
सुभग न तू भुजने का भय कर
मैं अंचल की ओट किये हूँ
अपनी मृदु पलकों से चंचल
सहज सहज मेरे दीपक जल

सीमा ही लघुता का बंधन
है अनादि तू मत घड़ियाँ गिन
मैं दृग के अक्षय कोषों से
तुझमे भर्ती हु आंसू जल
सजल सजल मेरे दीपक जल

तम असीम तेरा प्रकाश चिर
खेलेंगे नव खेल निरंतर
तम के अणु अणु में विद्युत सा
अमिट चित्र अंकित करता चल
सरल सरल मेरे दीपक जल

तू जल जल जितना होता क्षय
वह समीप आता छलनामय
मधुर मिलान में मिट जाना तू
उसकी उज्जवल स्मित में घुल मिल
मदिर मदिर मेरे दीपक जल

प्रियतम का पथ आलोकित कर। ..


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