Bharat me Bhrashtachar/Bhrashtachaar- An essay in Hindi

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भ्रष्टाचार - नीतिपथ से गिरा हुआ अधः पतन और भ्रष्ट - बेईमान, आचरण हीन. ये कुछ वे परिभाषाएं हैं ( भ्रष्टाचार की ) जो आपको किसी भी हिंदी शब्दकोष में आसानी से मिल जाएंगी। इन परिभाषाओं को देखकर प्रतीत होता है जैसे ये बहुचर्चित शब्द "भ्रष्टाचार" कोई बहुत ही बुरी और भयानक चीज़ है। जी हाँ मित्रों! असल में ये भ्रष्टाचार बहुत ही बुरी और भयानक चीज़ है। भ्रष्टाचार जिसे हम अंग्रेजी में करप्शन कहते हैं, वक़्त के साथ एक अंतर्राष्ट्रीय सरदर्द के रूप में उभरा है। केवल भारत ही नहीं, वरन चीन, पाकिस्तान, अफ्रीका, यहां तक कि अमेरिका, जैसे देश भी इससे अछूते नहीं हैं। भरष्टाचार एक दीमक कि तरह है, जैसे दीमक धीरे-धीरे लकड़ी को चट कर जाती है और पता भी नहीं चलता, ठीक उसही तरह ये भ्रष्टाचार रुपी दीमक कब राष्ट्र की आंतरिक व्यवस्थाओं का बुरादा निकाल देती है किसी को खबर भी नहीं होती। भ्रष्टाचार एक वैश्विक और बहुत ही बड़ा मुद्दा है, इस पर गहराई से चर्चा कर पाना इस छोटे से लेख में संभव नहीं है. मैं इस लेख को भारत के सन्दर्भ में संक्षिप्त कर रहा हूँ. भारत जिसे विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र होने का गौरव प्राप्त है, आज भ्रष्टाचार से बुरी तरह पीड़ित है। इतना पीड़ित है कि भ्रष्टाचार उसकी पहचान सा बन गया है। चाहें पी. डब्लू डी में चले जाएं, प्रशासनिक संकुल जाएं, मंत्रालय जाएं या न्यायालय ही चले जाएं। हर जगह आप इस भरष्टाचार को शान से पैर पसारे हुए पाएंगे। सिग्नल पर गलत तरह से गाडी चलाने पर १०० रूपए पुलिसवाले को देकर निकल जाने का अनुभव तो लगभग हम सभी को होगा। हज़ार रूपए र.T.O एजेंट को देकर हममें से कइयों ने मोटर लाइसेंस प्राप्त किये होंगे। खैर यह तो छोटे-मोटे भ्रष्टाचार थे। हमारे महान समाज जो की भेद-भाव और उंच-नीच से ओत-प्रोत है, में एक तबका वी. आई. पी और अमीर भी कहलाता है। भ्रष्टाचार इन अमीरों का परम सेवक है। ये चाहें फूटपाथ पर सोते हुए गरीबों को अपनी महंगी एस. यु. व्ही के पहियों तले रौंद दें, या गलत तरीकों से बेशुमार संपत्ति बटोर लें। पैसे के ज़ोर से यह किसी भी न्यायालय और जेल से "बा-इज़्ज़त" बरी होने का सामर्थ्य रखते हैं। आखिर भ्रष्टाचार स्वयं जो इनकी सेवा में हाज़िर है ! भ्रष्टाचार के कई गाने (चर्चे) आपने पहले भी सुने होंगे टी. वि पर रेडियो पर, अख़बारों में, या फिर गली के नुक्कड़ पर, भ्रष्टाचार आप सभी का देखा परखा हुआ है। इसलिए भ्रष्टाचार राग में, मैं आपको ज़्यादा लम्बा अलाप नहीं सुनाऊंगा। हम इसे थोड़ा करीब से जानने कि कोशिश करेंगे। तो ये भ्रष्टाचार कैसे होता है ? और ये भ्रष्टाचारी आखिर हैं कौन ? ये कैसे हुआ की गांधी और नेहरू द्वारा स्थापित विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र आज एक "भ्रष्टतंत्र" बन कर रह गया है ? ये वो सवाल हैं जिनका जवाब हम दसियों सालों से ढून्ढ रहे हैं। "कस्तूरी कुंडली बसै, मृग ढूंढे बन माहिं ; ऐसे घाटी-घाटी राम हैं, दुनिया दैखे नहिं। या अगर मुहावरे की भाषा में कहें तो : बगल में छोरा, शेहेर में ढिंढोरा। भ्रष्टाचार का मामला कुछ ऐसा ही है। लोगों का दिमाग फिर जाता है, "उनका लालच और ज़रूरतें, ज़रूरत से ज़्यादा बढ़ जाती हैं ",जब उनकी अंतर-आत्मा सो जाती है, तब भ्रष्टाचार का जन्म होता है। भ्रष्टाचार हम सब मिल कर करते हैं, और हम इतने भ्रष्ट हो चुके हैं कि खुद को बचाकर सारा ठीकरा दूसरे के सर पर फोड़ना चाहते हैं। कभी नेता पर, कभी अभिनेता पर, कभी थानेदार पर तो कभी समाज पर। अपना नाम हम कभी नहीं लेते। और ये लोकतंत्र यह भी एक ही दिन में भ्रष्टतंत्र नहीं बना हम सभी ने इसे यह रूप देने के लिए सतत योगदान दिए हैं। सिग्नल पर पैसे लेना, सूखा रहत कोष के पैसे डकार लेना, किसानों का मुआवज़ा हज़म कर जाना आदि। हम भ्रष्टाचार को इस ही रूप में जानते हैं। हाँ, यही भ्रष्टाचार है, लेकिन नहीं सिर्फ यही भ्रष्टाचार नहीं है. आपको जानकार शायद हैरानी हो, लेकिन हम सभी के सभी भ्रष्टाचार है। कैसे ? हम वजह-बेवजह झूट बोलते हैं, ले-दे के अपना काम जल्दी करवा लेने का महान आइडिया हमारा अपना ही है, हम आलस करते हैं, अपने काम में हम ईमानदार नहीं हैं। विद्यार्थी पढ़ते नहीं हैं, शिक्षक पढ़ाना नहीं चाहते, मैनेजर का काम में मन नहीं लगता, गृहणी को घर का काम बोझ लगता है और तो और हम अपनी संवेदनाएं भी लगभग खो हैं, अपनी संस्कृति, अपनी पहचान, अपने रिवाज़, अपने संस्कार, इन सभी की एक धुंधली सी छवि भर बाकी है जो किसी भी दिन मिट जाएगी। अपने किए का इलज़ाम हम दूसरे के सर मढ़ते हैं, एक तरफ अपनी छवि साफ़ पेश करते हैं, तो पीछे के दरवाज़े से दहेज़ जैसी कुप्रथाओं का समर्थन और पालन पोषण करते हैं। किसान जहरीली "दवाइयों" का उपयोग कर रातों रात फसल ले लेना चाहते हैं। हमारे घरों में पानी है, ज़मीन उपजाऊ है और हवा साँस लेने योग्य है, यह धरती मय्या की ममता है, लेकिन कैसे हम इसका गलत फायदा उठाते हैं। पानी को बेज़ा बहते हैं, ज़मीन और हवा में जहर फैलाते हैं. हम धोका देते हैं, दिलों में रंजिशें रखते हैं। और खुद का दामन पाक साफ़ बताते हैं, और कहते हैं भ्रष्टाचार को जड़ से मिटा देंगे। वाह! नौ सौ चूहे खाकर बिल्ली हज को चली। तो हम भ्रष्टाचारी कैसे हो ? हमें भ्रष्टाचारी किसने बनाया? हैरान होने की ज़रूरत नहीं है। भ्रष्टाचार तो हमने बचपन से सीखा है, हमारे ही माता पिता ने सिखाया है। आपको तो याद ही होगा, बचपन में कभी माँ ने कहा होगा फलां आए तो कह देना पापा घर पर नहीं हैं। तो कभी आपने उन्हें किसी की बुराई करते सुना होगा कभी आपस में झगड़ते हुए और न जाने क्या क्या। मै यहाँ ज़िक्र नहीं करना चाहता मेरा मकसद तो केवल आपको इस गंगा की गंगोत्री से अवगत कराना था। तो बताइये? भ्रष्टाचार वगैरह सुनकर आपका बड़ा खून खौलता होगा क्या अब आपका वो खून खौल रहा है? क्या आपको अब भी लगता है की आपको हक़ है की आप भ्रष्टाचार को लेकर बड़ी बड़ी डींगे हांकें? नहीं! आपको कोई हक़ नहीं है. किसी अन्ना हज़ारे, केजरीवाल और मोदी के पास कोई जादू की छड़ी नहीं है जो घुमाएं और सब साफ़। अपने लेख के माध्यम से मई लोगों से अपील करूँगा के वे झांसों में न आएं और अपनी शक्तियों का शोषण होने से बचाएं। भ्रष्टाचार का एक ही अंत है, खुद को सुधारें। खुद को सुधारेंगे तो दुनिया सुधरेगी। क्योकि ये दुनिया आप ही से है.

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