24
Oct
2014
1:59 pm

Ek Phool Ki Chah

उद्वेलित कर अश्रु-राशियाँ,               हृदय-चिताएँ धधकाकर, महा महामारी प्रचण्ड हो               फैल रही थी इधर उधर।  क्षीण-कण्ठ मृतवत्साओं का               करुण-रुदन दुर्दान्त नितान्त, भरे हुए था निज कृश रव में               हाहाकार अपार अशान्त।  बहुत रोकता था सुखिया को              

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24
Oct
2014
1:36 pm

Madhur Madhur Mere Deepak Jal

मधुर मधुर मेरे दीपक जल युग युग प्रतिदिन, प्रतिक्षण, प्रतिपल प्रियतम का पथ आलोकित कर सौरभ फैला विपुल धुप बन मृदुल मोम सा घुल रे मृदुतन दे प्रकाश का सिंधु अपरिमित तेरे जीवन का अणु गल गल पुलक पुलक मेरे

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